प्रेम बन्धन हींन होता है (Love never rests)

परमात्मा से मिलने का द्वार है प्रेम.....

      संपूर्ण संसार की पीड़ा यही है कि प्रेम love की हमारे भीतर आकांछा तो है,लेकिन इस संसार - सागर में उसकी तृप्ति का कोई उपाय नही है। इसलिए जितने प्रेमी इस संसार में कष्ट पाते हैं, प्रेम हींन लोग नहीं पाते प्रेम-हीन तो कठोर हैं या कहें प्रेम हीनों ने तो अपना दिल कठोर कर लिया है ।

        वे प्रेम के झंझट में ही नहीं पड़ते इसे गहराई से समझना होगा। प्रेम love उपद्रव है ।क्योंकि प्रेमloveकी प्यास तो मन में है और यहां कोई व्यवस्था नहीं है उसकी प्राप्ति हो सके।

            परमात्मा ने, हमारे जीवन मे एक आयोजन किया है कि प्रेम की प्यास तो दी है और प्रेम का कोई उपाय यहां तृप्त करने का नहीं दिया।क्योंकि हम यहां भटक न जाएं ,क्योंकि हम गन्तव्य पर लौटकर ही वापस आऐं, ताकि हमें गन्तव्य पर लौटना ही पड़े। 

           ईश्वर ने प्यास हमारे रोए रोए में तो भर दी है इसलिए इस संसार-सागर में ऐसा मनुष्य हम नही खोज पाएंगे  जो प्रेम पाकर आनन्दित न होता हो,चाहे छोटे से 

          दूधमुँहे बच्चे हों या फिर मृत्यु शैया पर पड़े व्रद्ध जन  तक , सतत हम प्रेम के लिए टटोलते फिरते हैं,खोजते रहते हैं कि हमें प्रेम कहां से मिल जाए कैसे मिल जाए और यहां कभी स्थाई रूप से मिलता नहीं । 

         यह परमात्मा की बड़ी अनुकम्पा है, प्रेम की प्यास तो दी है ,लेकिन प्रेम को तृप्त करने का कोई उपाय नही दिया।

     इसलिए एक न एक दिन टकरा - टकराकर ,भटक -भटक कर द्वार - दीवारों को खट खटाकर  हमें यह बात समझ में आ ही जाती है कि अगर प्रेम को तृप्त करना है तो तृप्ति का उपाय परमात्मा में है,और कहीं नहीं ।

जिस दिन यह बोध होता है उसी दिन मनुष्य धार्मिक होता है।

 इस संसार - सागर में तो सभी प्रेम सशर्त हैं । हम जब किसी को प्रेम करते हो तो हम कहते हैं - यदि तुमने ऐसा किया तो ही  मेरा प्रेम तुम्हें मिल पाएगा अन्यथा प्रेम मेरा तुम्हारे लिए रुक जाएगा। यह तो सौदा है , यह तो  व्यवसाय है । प्रेम तो आबाध बहना चाहिए ,उसके पीछे कोई हेतु और कारण नहीं होना चाहिए।

        परमात्मा आकाश जैसा व्यापक है । हम व्यापक से प्रेम करेंगे तो हम व्यापक हो जाएंगे , निम्न से प्रेम करेंगे तो निम्न हो जाएंगे ।

          परमात्मा के प्रेम में कोई बंधन नहीं होता है (Love is bound) उसके प्रेम love में पूर्ण स्वतंत्रता है उसकी कोई सीमा नहीं लगती,हमको कोई मर्यादा नहीं बांधनी होती उसका प्रेम हमें स्वीकार करना है हम जैसे हो वैसे ही ।


श्रीमति माधुरी बाजपेयी

मण्डला

मध्यप्रदेश

भारत

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