हिन्दी के दीवाने,(hindis lover)

हिंदी को जन जन की भाषा बनाने वाले पुरोधा (hindi ko jn-jn ki bhasa banane vale purodha)

हिन्दी के दीवाने,(hindis lover) हिंदी को जन जन की भाषा बनाने वाले पुरोधा (hindi ko jn-jn ki bhasa banane vale purodha)

हिन्दी सप्ताह

स्वामी दयानन्द

             स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म 1824 में गुजरात राज्य के काठियावाड़ जिले के टंकारा गाँव में हुआ। मूल नक्षत्र में जन्म लेने के कारण उनका नाम मूलशंकर रखा गया।  गुजरात वासी श्री स्वामी दयानन्द के भाषण हिन्दी मे सुन लोग गद - गद हो जाते। गुजरातवासी पुरोधा के मुख से जब हिंदी की प्रस्तूतियां हुई तो हिंदी को जैसे फलने-फूलने का आशीर्वाद मिल गया। स्वामी जी संस्कृत के प्रकाण्ड पंडित और वक्ता थे, गुजराती उनकी मातृभाषा थी, पर देश हित में उन्होंने मन में हिन्दी को स्वीकार किया था। 1972 में केशवचंद्र सेन के आमंत्रण पर कलकत्ता गये। उन्होंने केशवचन्द्र सेन के आग्रह पर संस्कृत और गुजराती दोनों को छोड़ हिंदी में भाषण दिया। संस्कृतनिष्ठ वाणी में वेद वेदांगों के प्रतिपादन से कलकत्तावासी झूम उठे। इसके बाद उन्होंने सदैव हिंदी में ही भाषण दिये। वे हिंदी में नागरी लिपि में पत्र-लिखने लगे। उन्होंने कई लेख नागरी लिपि और हिंदी भाषा में लिखे। आर्य बंधुओं को उन्होंने नागरी लिपि और हिंदी भाषा में पत्र पत्रिकाएं निकालने की प्रेरणा देते हुए स्वयं भी 'भारत सुदशा प्रवर्त्तक' पत्र हिंदी में निकाला। हिन्दी के दीवाने,(hindis lover) हिंदी को जन जन की भाषा बनाने वाले पुरोधा (hindi ko jn-jn ki bhasa banane vale purodha)

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हिन्दी मे लिखी सत्यार्थ प्रकाश से हिंदी जगत की पत्रकारिता को मिली नई दिशा 

            स्वामी दयानन्द संस्कृत व हिन्दी के अतिरिक्त अन्य भाषाओं का भी आदर करते थे। उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश में लिखा है कि जब पुत्र-पुत्रियों की आयु पांच वर्ष हो जाये तो उन्हें देवनागरी अक्षरों का अभ्यास करायें, अन्यदेशीय भाषाओं के अक्षरों का भी। स्वामीजी अन्य प्रादेशिक भाषाओं को हिन्दी व संस्कृत की भांति देवनागरी लिपि में लिखे जाने के समर्थक थे जो राष्ट्रीय एकता की पूरक है। अपने जीवनकाल में हिन्दी पत्रकारिता को भी आपनाने हेतु नई दिशा दी। 

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महात्मा गांधी

             गांधीजी भी गुजरात से थे, उनकी मातृ भाषा भी गुजराती थी। 29 मार्च 1918 में गांधी जी ने घोषणा की थी कि हिन्दी को राष्ट्र भाषा बना देना चाहिए। उसके बाद कांग्रेस ने हिन्दी को महत्व देना शुरू किया था। 1918 के पहले राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन के प्रस्ताव अंग्रेजी भाषा में जारी होते थे। कहा जाता है कि गांधीजी की अंग्रेजी का ज्ञान अंग्रेजों से अच्छा था। 1918 के बाद उन्होंने यह कहा था कि सभी को बता दो कि गांधी अंग्रेजी भूल गया। गांधी जी भारत की आजादी की मांग को लेकर अंग्रेजी सरकार से बात करने के लिए लंदन गये थे।लंदन में अंग्रेज जानते थे कि गांधी जी अंग्रेजी भाषा के अच्छे विद्वान है। अंग्रेजों ने गांधीजी से अंग्रेजी में बात करने के लिए कहा तो गांधीजी ने कहा- वह अब अंग्रेजी भूल गये हैं। लंदन में भी उन्होंने ब्रिटिश सरकार से हिन्दी में ही बात की। इसके लिए अंग्रेज सरकार को दोभाषियाँ रखना पड़ा था। 

महात्मा गांधी कहा करते थे कि-

"हृदय की कोई भाषा नहीं है, हृदय-हृदय से बातचीत करता है और हिन्दी हृदय की भाषा है।          

अंग्रेजी शिक्षा स्वीकार कर, राष्ट्र बना गुलाम

             गांधी जी ने लिखा, कि, आप को समझना चाहिए कि अंग्रेजी शिक्षा स्वीकार कर, हमने अपने राष्ट्र को गुलाम बनाया है। अंग्रेजी शिक्षा से दंभ, विलासिता, अत्त्याचार वगैरा बढ़े हैं। अंग्रेजी शिक्षा पाये हुए लोगों ने प्रजा को ठगने में, उसे पीडित व शोषित करने में कुछ भी बचाया नहीं है।

पाठ्य पुस्तकें बाद में आती है,भाषा पहले आती है

             गांधी जी कहते हैं कि- ”यदि मेरे पास शासन की एकमुखी शक्ति होती, तो आज के आज, अपने छात्र छात्राओं की परदेशी माध्यम द्वारा होती शिक्षा,रुकवा देता। और सेवा-मुक्त करने का भय दिखाकर सारे प्राध्यापकों एवम् शिक्षकों से, तत्काल बदलाव लाने की माँग करता। पाठ्य पुस्तकें तैयार होने तक भी राह ना देखता। वे तो बदलाव के बाद बन ही जाती। यह परदेशी माध्यम ऐसा पाप है, जिसका अविलम्ब उपचार आवश्यक है।” कोई भी भाषा पहले होती है,पाठ्य पुस्तके बाद में आती हैं। कोई उदाहरण है, जहां पुस्तके पहले थी,और बाद में भाषा पैदा हुयी???इस तरह महात्मा जी का निश्चय स्पष्ट है। 

हिंदी साहित्य सम्मेलन से हिंदी राजकी भाषा करने का निर्णय जो कि संविधान की धारा में दर्शाया गया

             सन 1918 में महात्मा गांधी ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन में हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने का सुझाव दिया था। गांधी जी ने इसे जनमानस की भाषा कहा था। 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने निर्णय लिया था कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी। इस महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने और हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर वर्ष 1953 से पूरे भारत में 14 सितम्बर हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारतीय संविधान में हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया है। संविधान के भाग 17 के अध्याय की धारा 343 (1) में दर्शाया गया है कि संघ की राज भाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। यह निर्णय 14 सितंबर को लिया गया था इसलिए हिन्दी दिवस के लिए इस दिन को श्रेष्ठ माना गया था। हिन्दी को जब राजभाषा के रूप में चुना गया और लागू किया गया तब आगे देखें क्या हुआ.....

अंग्रेजों की कूटनीति ने पुनः किया अंग्रेजी राज भाषा:-

            अब अंग्रेजों ने गैर अंग्रेजी वाले राज्यों को उकसाया की यदि हिंदी भाषा राज्य की हुई तो आपकी भाषा का क्या मूल्य ??? इस तरह से धीरे-धीरे आग सुलगी और प्रचंड अग्नि बनी और संविधान की एक धारा ऐंसी है कि जरूर हिन्दीराज भाषा होगी,लेकिन यदि कोई भी राज विरोध न करें तब,परन्तु कुछ तो गैर-हिन्दी भाषी राज्य के लोग इसका विरोध करने लगे और तब अंग्रेजी को ही राजभाषा का दर्जा दिया गया है।

अटल विहारी बाजपेयी                 

             हिन्दी के महान कवि श्री अटल बिहारी वाजपेयी देश के पूर्व प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई की सरकार में विदेश मंत्री रहे थे। इस दौरान वर्ष 1977 में संयुक्त राष्ट्र के अधिवेशन में उन्होंने अत्यन्त ही विश्वव्यापी तथा विश्व बन्धुत्व के दृष्टिकोण से ओतप्रोत ओजस्वी भाषण हिन्दी में दिया था। अटल जी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में भाषण देकर भारत तथा हिन्दी को वैश्विक स्तर पर गौरवान्वित किया था। विश्व के जन समुदाय ने इस अवसर पर करोड़ों भारतीयों के प्रति जोरदार तालियाँ बजाकर अपना सम्मान व्यक्त किया था। हिन्दी को विश्वव्यापी पहचान दिलाने के लिए 10 जनवरी को अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है।

आगे है हिन्दी की लोक ख्याति लो लुभावनी होते जा रही है ।

हिन्दी की ख्याति

            इंटरनेट युग में हिन्दी का तेजी से विकास हुआ है और भारत के अलावा विश्व भर के 40 से अधिक देशों में 600 से अधिक विद्यालयों/महाविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई और सिखाई जाती है ।

अंग्रेजों के द्वारा सुलगाई आग कभी कभी आज भी देखने को मिलती है 

             लेकिन यदि दक्षिण भारत की बात करें तो राजनीतिक कारणों से यहाँ हिन्दी का लगातार विरोध किया जाता रहा है,जबकि वहाँ की जनता को वास्तविकता समझनी चाहिए। उन्हें समझना चाहिए कि हिन्दी का विरोध करके वो देश की लगभग 65 करोड़ आबादी से अपने आपको अलग-थलग कर रहे हैं। 

Internet की online/offline सेवा में दुनिया भर में लोगों का हिंदी पर  झुकाव निरन्तर बढ़ रहा है

           हिन्दी आज विश्व स्तरीय भाषा बनती जा रही है,और यही कारण है कि हिन्दी के पक्ष में एक बड़ा वर्ग और बाजार खड़ा हुआ है। हिन्दी के प्रति लेखकों प्रकाशकों और पाठकों का झुकाव निरन्तर बढ़ रहा है और यह हिन्दीभाषी वर्ग के लिए गर्व की बात है। 

हिन्दी भारत के अलावा भी बोली जाने वाली भाषा है,इतना ही नही कहीं-कहीं पढाई जाने वाली भाषा हिंदी है।

            हिन्दी सिर्फ भारत में ही नहीं बोली जाती बल्कि विदेशों- गुयाना, सूरीनाम, त्रिनीनाद, फिजी, मॉरिशस, दक्षिण अफ़्रीका और सिंगापुर ,नेपाल इत्यादि में भी यह अधिकांश लोगों की बोलचाल का भाषा है। जर्मन के स्कूलों में तो हिन्दी पढ़ाने के लिए विदेश मंत्रालय ने जर्मन सरकार से समझौता किया है और वहाँ पर जर्मन हिन्दी रेडियो सेवा संचालित है।

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Mobile और इंटरनेट की दुनिया लिखने और पढ़ना लोक लुभावन होता जा रहा है-

            सूचना तकनीक की मदद से अब हिंदी में लिखना और भी आसान हो गया है। मोबाइल से लेकर कंप्यूटर तक में हिंदी प्रयोग करने वालों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है। हिन्दी के व्यापक प्रसार को देखते हुए कई सोशल साइट्स चलाने वाली कंपनियों ने अपनी वेबसाइट पर हिंदी अनुवाद और हिंदी टाइपिंग की सुविधा भी दी है, जिससे आप अपनी बात अपनी भाषा में लिखकर बता सकते हैं। हिंदी में काम करने वालों के अनुसार हिंदी में अपनी बात बहुत सहजता से प्रमुखता से रखी जा सकती है, क्योंकि इसे कहना और समझना सरल है। देश-विदेश की बड़ी-बड़ी कंपनियों ने आज हिंदी को लेकर अनेकों सॉफ्टवेयर लॉन्च किए हैं, जिन्हें प्रयोग करने वाले लोगों की संख्या करोड़ों में है। आज मोबाइल और इंटरनेट के युग में लोगों को अंग्रेजी की अपेक्षा हिन्दी में काम करना लुभा रहा है।


श्रीमति माधुरी बाजेपेयी

मण्डला मध्यप्रदेश भारत

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