प्रार्थना की शक्ति(prathna ki shkti)

आलौकिक प्रार्थना की शक्ति
प्रार्थना (prathna) जब स्वीकार हो गयी,
           तो जीवन की सारी बुराइयां बेकार हो गयी।
भोर उठो करो प्रार्थना ,
         ये न कहना कि जीवन की शाम हो गयी। 
  निर्मल मन से की गई प्रार्थना    
        देखो ! परमात्मा को स्वीकार हो गई ।।
        प्रार्थना (prathna) में अनन्त शक्ति है, शास्त्रों में उत्कृष्ट प्रयोजन को प्रार्थना (prathna) कहा गया है । शुभकामनाओं से की गई प्रार्थना पुराने और बुरे संस्कारों को नष्ट कर देती है।साथ ही कालांतर में बुरे संस्कारो को जन्म ही नही लेने देती है।
        स्वार्थ या अशुभ कामना से की गई प्रार्थना,भविष्य में बुरे संस्कारों को जन्म देती है। अशुभ प्रार्थना (prathna)  सफल होने पर भी आगामी बुरे बन्धनों में बंधने के कारण इसका फल बुरा और दुख देने वाला होता है।
        सबसे उत्तम साधना निष्काम भाव की होती है । इससे पुराने बन्धन अधिक तीव्रता से नष्ट होते हैं । 
सांसारिक सफलता तो जैसी मिलनी होती है, मिलती है, पर आत्मा सांसारिक सुख - दुख से स्वाधीन हो जाती है ।
       प्रार्थना (prathna) का सबसे बड़ा और उत्तम फल सांसारिक कामनाओं की पूर्ति नही, किंतु वीतरागता और परमात्मस्वरूप के भाव मे लीन होना है।
      प्रार्थाना ( prathna )में विस्तार होता है ,प्रभु उसका संक्षिप्त रूप है । स्थूल से सूक्ष्म बलवान होता है,इसलिए प्रार्थना से नाम ज्यादा प्रभाव रखता है। नाम से परमात्मा के स्वरूप का स्मरण,ध्यान सुगम होता है।
          नामाक्षरों का चिंतन ह्रदय में,(मन)मस्तिष्क में और शरीर के अन्य किसी भी भाग में आसानी से हो सकता है।प्रत्येक अक्षर के उच्चारण का प्रभाव शरीर पर और मन पर भी पड़ता है।
       गीता में भी कर्म फल त्याग कर के भक्ति करने का उपदेश है और बताया गया है कि सभी प्राणियों से मैत्री रखने वाला ममता, अहंकार,क्रोध, भय, इच्छा आदि से रहित ,समता सन्तोष से युक्त भक्त ही प्रभु को प्यारा है । 
       इससे स्पष्ट है कि प्रार्थना (prathna)  या नाम - स्मरण ,शुभ भाव से या निष्कम भाव से करना चाहिए मुख्य तो पवित्र भावना याने आंतरिक पवित्रता है ।
क्षेत्र,आसन आदि बाह्य पवित्रता तो गोंण है, याने वंही तक उपयोगी है,जहां तक कि आंतरिक पवित्रता के लिए सहायक है। 
         जो प्रार्थना ( prathna) करना चाहता ,उसे पवित्र भाव से उपवास भी करना चाहिए। इसी प्रार्थना कि शक्ति के बल - बूते मनुष्य अपना जीवन सुखमय ओर आकर्षक बना सकता है । जैसे ही हमे प्रार्थना (prathna) की शक्ति का,एहसास होता है वैसे ही हमारे भीतर शुभ और सकारात्मक विचारों का उदय आरम्भ हो जाता है । 
यही विचार हमे सफलता की ओर ले जाते हैं ।

एक टिप्पणी भेजें

3 टिप्पणियाँ