मनुष्य के जन्म लेने के बाद से ही एक ऐंसा शब्द जीवन मे जुड़ जाता है,जो जीवन के अंत तक चलता रहता है,
जिसे हम कहते........
" वेदना"
संस्कृत व्याकरण के अनुसार संवेदना(samvedna) शब्द में 2 पद हैं
प्रथम वेदना(vedna) द्वितीय सम्वेदना (samvedna) इसमें सम का अर्थ है :- समान और वेदना का अर्थ है अनुभूति ।
तात्यपर्य :-
जब किसी एक व्यक्ति की अनूभूति किसी दूसरे व्यक्ति के सुख - दूख के साथ जुड़ जाती है तो उसे सम्वेदना (samvedna) कहते हैं।
इसी वेदना के सफल प्रयोग को कर,
हम सम्वेदना (samvedna) से जुड़ जाते हैं, वेदना (vedna) आत्मा में एहसास है, सम्वेदना(samvedna) कार्य का सँचालन है।
जैसा कि स्वामी विवेकानन्द ने कहा है कि :- सुख बाटने से दोगुना हो जाता है , दुख बाटने से आधा रह जाता है।
जब हम अपने सुख को किसी पारिवारिक सदस्य, मित्र या संबंधी,प्रकृती,सारभौमिक सत्ता के साथ बांटकर प्राप्त सुख का भोग करते हैं, तब हमारा सुख दोगुना हो जाता है, इसी तरह जब कोई अपना जीवन मे आये हुए,दुख को बांटता है,तब हमारा दुख आधा हमारे पास ही रह जाता है ।
क्योंकि इसमें अपने पन में कहीं न कहीं वेदना छुपी हुई होती है । वस्तुतः सुख और दुख को बांटने की प्रक्रिया में मूल रूप से व्यक्ति, की सम्वेदना (samvedna) ही काम करती है, इसलिए जिसकी सम्वेदना(samvedna) जितनी अधिक होती है और जिसकी भावना जितनी अधिक संस्कारित व मानवीय होती हैं, वह उतने ही लम्बे प्रीति भाव से दूसरे का सुख या दुख बाँट पाता हैं ।
अगर ऐंसा नही होता तब व्यक्ति अपने से भिन्न किसी का सुख देखकर उसके प्रति या तो 😏😏😏ईर्ष्यालु हो जाता है ,या फिर 😠😠क्रोध भाव से अभिभूत होकर अकारण ही ,सुखी व्यक्ति को हानि पहुंचाने का प्रयास करने लग जाता है ।
इस तरह से संकुचित सम्वेदना (samvedna) वाला व्यक्ति, किसी दूसरे व्यक्ति को दुखी देख कर करूणा के भाव के बिना यथावत जड़बत ही बना रहता है ।
और इस विचार से सन्तुष्ट होने का प्रयास करता रहता है कि इस व्यक्ति के साथ ठीक ही हुआ,और 😠 अब ऊंट पहाड़ के नीचे आया है । ऐंसी सम्वेदना में वेदना समाहित नही होती,और वेदना से भरी सम्वेदना में ईर्ष्यालु 😠😠 क्रोध भाव ,और परायापन इन को स्थान मिलता ही नहीं है।
सम्वेदना (samvedna) मनुष्य का एक उत्तम गुण है,
जिसके मूल में करुणा आलोभ और समत्व की भावना रहती है। किसी दूसरे के दुख से दुखी होने की स्थित तभी आती है जब हम में,करूणा होती है । और हम अपना कुछ त्याग करके दुखी व्यक्ति के लिए,सहयोग करने को तत्पर्य होते हैं ।
सम्वेदना (samvedna) का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के साथ जुड़ाव महसूस करने लगता है ।और इससे सह- अस्त्तित्व का सृजन होता है ।।
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