सद् विचारों का रहस्य(sd vicharon ka rhsy)

सद् - विचारों की चमक(sd vicharon ki chmk)-

सद् विचारों का रहस्य(sd vicharon ka rhsy)

                महान विचार यदि सामान्य व्यक्तियों के जीवन में स्थाई रूप से आना शुरू हो तो जीवन श्रेष्ठ गुणवत्ता से भर उठता है। इसके बाद समाज में एक नई संवेदना फैलने लगती है बहुत समय से आज तक अधिकांश चिंतक ,साधु, संत, महात्मा , ज्ञानी जन, अपने विचारों से लोगों को मुग्ध तो करते हैं, पर  ऐसे विचार को स्थाई रूप से हमारे जीवन मे उतार नहीं पाते हैं ।

  यह बात सिद्ध है-

               कि जो बातें सामान्य जन, महान व्यक्तियों से सीखते हैं (अर्थात ऐसे व्यक्ति से जो अपने सदविचार से गहरे से गहरे भरे हुए हों)
            उन्हें लोग स्वयं भी कभी ना कभी जरूर अनुभव करते हैं, वे जो अनुभव करते हैं,वह केवल विचारों का वह बाह्य आकर्षण होता है ,परन्तु ये विचार लोगों के जीवन को चमत्कारिक तरीके से नही बदल पाते हैं, क्योंकि इस प्रयोग में लोग रुचि नहीं लेते इस तरह अधिकांश लोग क्योंकि विचारों के लाभ से वंचित रह जाते हैं इसलिए हमें सद विचारों sd vichar से अवश्य जुड़ना चाहिए ।
         व्यक्ति में बुरे विचारों के उपजते ही उसके ह्रदय में भय भी उपजता है,कि वह गलत सोच रहा है ।

सद् - विचारों की चमक(sd vicharon ki chmk)

               यदि व्यक्ति अपने भय पर स्थिर होकर बुरे विचारों को त्याग दें और वह सद विचारों की ओर मुड़ जाए तो यह स्थिति वैचारिक व्यवहारिकता का आंशिक परिचय होगी और फलतः जीवन में एक नई आनन्द किरण चमकने लगेगी।
              परन्तु विचारों के महत्व से सभी विवेकशील लोग भली भांति परिचित होंगे,किंतु  क्या, अच्छे या श्रेष्ठ विचारों का महत्व सुंदर शब्दों तक सिमट जाना चाहिए? यदि नहीं तो  

आइए आगे पूर्ण एकाग्रता से समझते हैं - 

              यदि घंटे भर को भी हमारे मन के पूरे विचारों का ताना-बाना हमें स्मरण मेें आ जाए, तो जीवन में बहुत चिंता, जीवन में बहुत संताप का उदय होगा, क्योंकि तब दिखाई पड़ेगा कि यह हमारे भीतर क्या चल रहा है। बहुत कम लोगों को पता होता है ।
               उनके भीतर क्या हो रहा है? विचारों की इतनी असंगत स्थिति है, स्व-विरोधी विचारों की इतनी भीड़ है। एक-दूसरे विचार से द्वंद्व करने वाले विचार ही भीतर इकट्ठे हैं, इतनी कठिनाई है। इसी द्वंद्व में, इसी विचारों के अंतर-संघर्ष में मनुष्य के मन की सारी शक्ति क्षीण हो जाती है। और जिस मनुष्य के मन की शक्ति क्षीण हो जाती हो वह भीतर इतना निर्बल हो जाता है किसी भी गहरी सत्यता(सद विचारों) की खोज में उसकी कोई गति संभव नहीं है।

              इसके पूर्व कि कोई सत्यता(सद विचारो) की खोज में अग्रसर हो, जीवन को अनुभव करने चलेें, उसे मन के तल पर यह जो शक्ति का निरंतर ह्रास हो रही है, यह जो शक्ति निरंतर क्षीण हो रही है, इस ह्रास से छुटकारा, इस शक्ति का संचय। मन में द्वंद्व से मुक्ति आवश्यक है।

एक घण्टा एकांत में प्रयोग

सद् विचारों का रहस्य(sd vicharon ka rhsy)

            शायद आपको खयाल न आया हो, तो कभी एक घंटा एकांत में, जो भी मन में चलता हो उसे बैठ कर लिखें। ईमानदारी से लिखें। जो भी और जैसा चलता हो। तो उस घंटे भर में आपको अंतर-दर्शन होगा , इस बात का कि मेरा मन कैसे जाल को बुन रहा है। उसमें ऐसी-ऐसी बातें होंगी जिसकी आपने कल्पना न की होगी , और जो कभी आप अपेक्षा भी न करते होंगे कि मेरे भीतर ये हो सकती हैं। उसमें भजन भी होंगे, उसमें गालियां भी होंगी, उसमें अच्छे-अच्छे शब्द आत्मा-परमात्मा भी होंगे। उसमें अपशब्द भी होंगे, उसमें निम्न से निम्न और घृणित से घृणित भावनाएं भी होंगी, और अत्यंत जघन्य अपराधों की आकांक्षाएं भी होंगी। 

जाने प्रयोग के बाद विचारों की स्थिति :-

                ऐसी इच्छाएं होंगी जिनको देख कर आप चोंक जाएंगे। और इन सबके बीच कोई संबंध भी नहीं होगा, ये सब असंबंधित बातें एक-दूसरे की विरोधी होंगी। एक विचार से मन दूसरे विचार पर कूद जाएगा। एक इच्छा से मन दूसरी इच्छा पर कूद जाएगा। इस घंटे भर में अगर बहुत स्पष्ट ईमानदारी से आपने वही लिखा है जो आपके मन में चल रहा है तो आप बहुत चोंक जाएंगे। आपको शक होगा कि क्या मैं पागल तो नहीं हूं?
          जहां तक मैं देख पाती हूं, हमारे भीतर जो ताप और तीव्र विचारों की दौड़ है, अगर वह थोड़ी और उसकी मात्रा बढ़ जाए तो हमारे भीतर से कोई भी व्यक्ति मानसिक रोगी हो सकता है। मनुष्य-समाज में बहुत कम लोग हैं जो स्वस्थ हैं, अधिक लोग कम या ज्यादा मानसिक रोग की स्थिति में हैं। जितने मानसिक रोग से सामान्यतयाः काम चल जाता है उतने मानसिक रोग का हमें बोध नहीं होता, स्मरण नहीं होता। जो मानसिक रोग हमें सामान्य जीवन से बिलकुल तोड़ देता है तभी हमें उसका बोध होता है।
ऐसी विक्षिप्त विचार की स्थिति में कैसे कोई जीवन-सत्य (सद विचारों) की तरफ गति हो सकती है??

सद् - विचारों की चमक(sd vicharon ki chmk)

विशेष रूप से इस तथ्य को जान लेना अत्यंत आवश्यक है, 

              विचार की जो अतिशय दौड़ है, द्वंद्वात्मक, स्व-विरोधी,भावनाओं की जो स्व-विरोधी स्थिति है, वही मनुष्य को अति तनाव की स्थिति में मनोरोगी कर देती है,  इसलिए आपको इस बात से बहुत आश्चर्य नहीं होगा कि दुनिया जिनको बहुत बड़े विचारक मानती है, उनमें से अधिक लोग मनोरोगी हो ही जाते हैं।

एक हास्यपद विषय-

      इसलिए जब कोई कहता है, श्री कृष्ण, श्री राम,महावीर,बुद्ध,बड़े विचारक थे तो एक हास्यपद होगा क्योकि ये कोई भी विचारक नहीं थे, ये निर्विचार को उपलब्ध व्यक्तित्व थे। ये मानसिक रोगी होने से बिलकुल विपरीत स्थान पर खड़े व्यक्तित्व थे। विक्षिप्तता एक अति है, चित्त की और विमुक्तता दूसरी स्थिति है,चित्त की। हम सारे लोग इन दो के बीच कहीं डोलते रहते हैं।

सद् विचारों का रहस्य(sd vicharon ka rhsy)

विक्षिप्तता और विमुक्तता -

        अगर विचारों का तनाव और विचारों का भार बढ़ता चला जाए तो हम विक्षिप्त (मनो रोगी)होने की तरफ बढ़ते चले जाते हैं। 
अगर विचारों का भार और तनाव क्षीण होता जाए और चित्त शांत और मौन होता जाए और एक ऐसी स्थिति में पहुंच जाए, ऐसी निस्तरंग स्थिति में जहां कोई भी विचार का कंपन नहीं है, तो हम विमुक्त होने के करीब पहुंच जाते हैं। 

दो केंद्रीय तत्व हैं मनुष्य के चित्त के--विमुक्ति और विक्षिप्तता का । 

         सामान्यतः हम जो भी जीवन में करते हैं उससे हम विक्षिप्त होने की तरफ बढ़ते चले जाते हैं। परन्तु , नए जीवन के सांस लेते ही धर्म, साधना,ध्यान,सद विचार, दूसरी दिशा (विमुक्ति की तरफ) में ले जाने का आग्रह करती है और आमंत्रण देती है।

समझ से जुडाब :- 

                संग्रह का भाव न हो, जीवन को समझने का भाव हो। समझने के भाव से ज्ञान उपलब्ध होता है।

सद विचारो को समझना आवश्यक है :-

          श्री कृष्ण ,श्री राम,महावीर ने, बुद्ध ने जो कहा है - उसे समझना और बात है, उसे संग्रह कर लेना और बात है। समझ , संग्रह नहीं है। संग्रह,समझ नहीं है, समझ मैं कोई संग्रह नहीं होता। और जहां संग्रह होता है वहां समझ नहीं होती। 

मौलिक रूप से यह जीवन हमेशा ध्यान रहे कि, - 

            मैं विचारों को संग्रह करने के पीछे तो नहीं पड़ा हूं या पड़ी हूँ?, संग्रह से क्या होगा? सब संग्रह उधार होगा, दूसरों का होगा।समझ ताजी,जीवंत और युवा होगीसमझ मुक्त करती है, संग्रह बांधता है। समझ स्वतंत्र करती है। और सद विचारों का निर्माण करती है।

एक कहानी- 

            बंगाल में एक बहुत बड़े विद्वान और विचारक हुए। नाम आपने सुना होगा, श्री विद्यासागर। एक नाटक को देखने गए थे। समझदार थे, बहुत विद्वान थे, बहुत किताबें लिखीं, बहुत भाष्य लिखे। और बंगाल में उन जैसा कोई विद्वान हुआ नहीं । नाटक देखने गए थे, नाटक चलता था, और एक खलनायक उस नाटक में एक स्त्री को बुरी तरह परेशान किए जा रहा था। उसका पीछा किए जा रहा था। विद्यासागर बड़े सज्जन व्यक्ति थे, उनकी बरदाश्त के बाहर हो गया। एक घड़ी ऐसी आई कि उस पात्र ने उस स्त्री को आखिर पकड़ लिया। विद्यासागर उठे, जूता निकाला और मार दिया। वह नाटक था, लेकिन वे भूल गए कि नाटक है। सामने ही बैठे थे, जूता निकाल कर मार दिया और कहा कि ठहर बदमाश! वह पात्र कहीं उनसे ज्यादा समझदार(सद विचार से भरा हुआ) रहा होगा, उसने जूता उठा कर सिर से लगा लिया और उसने कहाः इससे बड़ा पुरस्कार मुझे कभी नहीं मिला। विद्यासागर जैसा आदमी भी नाटक को असली समझ ले, यह मेरे अभिनय की खूबी हो गई।
         हम तो नाटक को भी भूल जाते हैं कि वह नाटक है। जब कि जानना जरूरी यह है कि जीवन नाटक है। नाटक जीवन मालूम होने लगता है। जब कि जरूरी यह है कि जीवन नाटक मालूम हो तब तो तटस्थ हो सकते हैं, तब तो दूर हो सकते हैं।              
              विचार परदों पर चलता हुआ नाटक रह जाए तो ही आप दूर हो सकते हैं। लेकिन अभी तो हमारी स्थिति यह है कि नाटक भी बहुत जल्दी जीवन का हिस्सा हो जाता है, उसको भी हम समझ लेते हैं। नाटक में भी रोते हैं और हंसते हैं, वहां भी आंसू पोंछते हैं। तो जब परदे पर चलती हुई तसवीर हमारे प्राणों को ऐसा आच्छादित कर लेती हो, तो तटस्थ रहना बड़ा मुश्किल हो जाता है। 

तो अब जानते हैं कैसे हो आगमन सद विचारों का

सद् विचारों का रहस्य(sd vicharon ka rhsy)

           निरंतर-निरंतर सद विचारों के बोध से, विवेक से, प्रज्ञापूर्वक स्मृति से,ध्यान से संभव हो जाता है सद विचारों में तटस्थ रहना है।
            इस लिए जीवन को सद विचारों की गहरी परत पर समर्पित होने का मौका दीजिए तभी तो सद विचारों से भरा हुआ आचरण से जीवन चमक उठेगा।

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            श्री मति माधुरी बाजपेयी

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