विवेक के सूत्रधार हैं (Vivek ke Sotradhar hn)
"श्री गणेश"(shree gnesh)
हमारा हर दृष्टिकोण विवेकयुक्त गणपति हो जाता है । इसलिए तो कहा जाता है कि अनुकूलतम स्थिति आने लगी क्योंकि मनुष्य अब विवेकयुक्त होने लगा।
लेकिन इसके विपरीत जब किसी के जीवन में विवेक का अभाव होने लगता है, तो उसका चिंतन उसकी बुद्धि का दृष्टिकोण सभी कुछ विवेक से हीना होने लगता है, जिससे उसका पतन होने लगता है और यदि ऐसा व्यक्ति शीघ्र अति शीघ्र यह बात नहीं जाना कि वह विवेक हीन हो गया है,तो अंत में उसका सर्वनाश होना तय होता है। इसलिए विवेक युक्त गणपति (Shree gnesh)को सभी देवताओं की उपासनाओं से पहले पूजा जाता है।
आइए इसे एक उदाहरण के द्वारा समझें
गणेश उत्सव के रचनाकारों की दूरदर्शिता
यद्दपि उत्सव के पहले ,मनीषियों ने, संतो ने,रचनाकारों ने इस पूरे क्रम को समझा और उत्सव की रचनाओं के पहले इस विश्व में विवेकयुक्त गणेश उत्सव का निर्माण किया।
क्योंकि यदि विवेक होगा तो ही शुभ होगा,यदि विवेक नहीं होगा,तो शुभ भी होने की कोई संभावना नहीं है ।
इसलिए भारतीय परंपराओं में देवताओं के शयन के कुछ दिन बाद उत्सवों की श्रंखला प्रारंभ होती है तो ऐसे उत्सवों में किये जाने वाले प्रयोग लगातार 10 दिवसीय नौ दिवसीय 16 दिवसीय होते हैं, जिनको पूरे उत्साह से मनाया जाता है।
उन सब में सर्वप्रथम विवेक युक्त गणपति का उत्सव मनाया जाता है, इससे तात्पर्य यह है कि जीवन में यदि विवेक होगा तो उत्सव होगा । बिना विवेक के उत्सव होना संभव नहीं है जीवन में जब भी सुख आएगा तो सुख का प्रथम चरण भी विवेकयुक्त गणेश जी से प्रारम्भ होगा।तो समझना होगा । विवेक के सूत्रधार हैं (Vivek ke Sotradhar hn)श्री गणेश(shree gnesh) हैं।
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गणेश उत्सव ,विवेक का उद्भव {ganesh utsav vivek ka udbhv} gnesh utsv 2020
रिद्धि और सिद्धि क्या है
दो शब्द हैं रिद्धि एक शब्द है,दूसरा शब्द सिद्धि । जब किसी कार्य में कुशलता आ गई हो,अर्थात अब पहले से किसी कार्य मे कम समय लगने लगे। तब जीवन में सिद्धि घटित होती है । लेकिन इस सिद्धि को लंबे समय तक स्थिर रखने के लिए विवेक का होना आवश्यक है विवेक हीन व्यक्ति सिद्धि को बहुत आसानी से खो सकता है।
एक और उदाहरण में अध्ययन में स्थिर होते हैं
उदाहरण :-
ऐसा ही परिणाम रिद्धि का भी है रिद्धि भी उसी के पास होती है जिसके पास विवेक होता है, रिद्धि - यश,कीर्ति,स्थिर धन आगमन,इत्यादि-इत्यादि है,जो कि इस जगत का महत्वपूर्ण हिस्सा है।इसलिए तो विवेक के सूत्रधार हैं (Vivek ke Sotradhar hn)श्री गणेश(shree gnesh) ।
अहंकार से विवेक का पतन
सम्पूर्ण विश्व के मनुष्यों के जीवन का अमूल्य हिस्सा है- रिद्धि और सिद्धि। जब किसी व्यक्ति के जीवन में कुछ क्षणों के लिए या कहें कुछ दिनों के लिए रिद्धि और सिद्धि स्थिर हो जाती हैं, तो कुछ मनुष्यो के मन में अहंकार का जन्म होता है जैसे-जैसे व्यक्ति अहंकारी होते जाते हैं , वैसे-वैसे व्यक्ति के मन में मस्तिष्क में पाप भावनाओं का उदय होने लगता है, और व्यक्ति विवेक हींन होने लगते हैं,हर वह व्यक्ति जो विवेक हींन होने लगता हैं ठीक उसी मात्रा में जिस मात्रा में वह विवेक हींन हो रहा है, धीरे-धीरे रिद्धि - सिद्धि से दूर होता जाता है, और 1 दिन ऐसा आता है कि वह पूर्ण रूपेण दूर हो जाता है।
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नवीनतम भारतीय आध्यात्मिक जगत बहुत उन्नत है और पुरातन काल से ही उसने विवेक का प्रतीक गणेश जी को माना है और यह भी कह दिया कि , "जो मनुष्य गणेश जी के समान विवेक पूंर्ण होगा वही व्यक्ति रिद्धि-सिद्धि से भी युक्त होगा,वहीं पर रिद्धि-सिद्धि का स्थायित्व भी होगा। अर्थात रिद्धि-सिद्धि से भी युक्त,और स्थायित्व, विवेक पर ही निर्भय है,और जहां पर विवेक युक्त गणेश जी नहीं होंगे, वहां पर रिद्धि - सिद्धि कभी साथ नहीं होंगी।
गणेश जी की आकृति में छुपे विवेकयुक्त नवीन सन्देश
भारतीय आध्यात्मिक जगत में गणेश जी की आकृति को भी कुछ इस तरह से ही बनाया गया था, कि हर आकृति के हर हिस्से में गणेश जी के कुछ ना कुछ गुणों से ओत-प्रोत कारण छुपे हुए थे उन कारणों को प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करके विश्व को विवेक युक्त होने के लिए प्रेरणा दी जाती थी , जिस का चित्रण भिन्न भिन्न आकार की गणपति जी मूर्तियों के रूप में आज भी हम देखते हैं।
भारतीय परंपराओं में गणेश जी की उपासना से पहले उपासना किसी देवता व देवी की कभी भी नही की जाती है।और भिन्न-भिन्न नामों से उनको पुकारा भी जाता है। लेकिन धीरे-धीरे व्यक्ति यह भूल जाते हैं कि जीवन में विवेक आना अत्यंत अनिवार्य है गणेश जी का संपूर्ण चित्र विवेक से युक्त है ।
आगे हम जानेंगे गणेश जी के एक-एक हिस्से में कैसे-कैसे मनीषियों, संतों ने,रचनाकारों ने एक दूर दृष्टि व सूक्ष्म अवलोकन को ध्यान में रखकर सम्पूर्ण विश्व को भिन्न -भिन्न संदेश प्रदान किया है, जिससे जब भी वह गणेश जी के पास जाएं, तो उसके अंदर अहंकार का दमन होकर वह विवेक युक्त हो जाए ।
आकृति का दर्शन कर श्रेष्ठ विचारों को आत्मसात कीजिये
गणेश जी की आकृति के दर्शन कर , आकृति के संदेश को समझ कर उन संदेशों के हिस्सों को पहचान कर अपने अंदर इन संदेशों को आत्मसात करें। जिससे उसका जीवन हमेशा की तरह सूक्ष्म अवलोकन से विवेक वान होकर चमक उठे। अन्तोगत्वा सम्पूर्ण मनोयोग से गणेश जी की साधना वह कर सके।
इस विश्व के हर प्राणी की आवश्यकता है ,वह चाहता है कि उसके जीवन में गणेश जी उतरे क्योंकि हममें से हर कोई चाहता है कि उसके जीवन में रिद्धि-सिद्धि दोनों एक साथ स्थिर हों, बहुत कम लोग होंगे जो यह न चाहे कि उसके जीवन में रिद्धि - सिद्धि न आए । लेकिन इन दोनों का स्थायित्व केवल विवेक युक्त गजानन ही कर सकते हैं, यदि हम सम्पूर्ण रूप से विवेक युक्त गणेश जी से परिचित नहीं होते तो हम किसी भी तरीके से बहुत दूर हो सकते हैं रिद्धि और सिद्धि से।
अब हम गणेश जी को समझते हैं
गणपति - बुद्धि, विवेक के देवता होने के कारण बुध ग्रह के अधिपति तो ये हैं ही, जगत का मंगल करने, साधक को निर्विघ्नता पूर्ण कार्य स्थिति प्रदान करने, विघ्नराज होने से बृहस्पति भी इनसे तुष्ट होते हैं।
गणेश जी का नाम भाल चंद्र है
गणेश जी के मस्तक (भाल) पर द्वितीया का चंद्रमा सुशोभित रहता है, इसलिए उन्हें भालचंद्र भी कहते हैं। चंद्रमा शीतलता का प्रतीक है। इसका अर्थ हम यह ग्रहण करें कि जिसके मन-मस्तिष्क में शीतलता और शांति होगी, वही बड़ी से बड़ी समस्याओं का समाधान सरलता से कर सकता है। आखिर वे बुद्धि के देवता हैं। बुद्धि तभी काम करती है, जब हमारा दिमाग ठंडा हो।
वे गजानन हैं
अर्थात उनका मुख (आनन) हाथी का है। हाथी का मुख होने की पौराणिक कहानी तो सभी ने पढ़ी होगी, लेकिन हमें जो ग्रहण करना है, वह यह है कि बुद्धि के स्वामी को हाथी की तरह धीर-गंभीर और बुद्धिमान तो होना ही चाहिए।
हाथी स्वयं ही विशाल मस्तिष्क और विपुल बुद्धि का प्रतीक है।
बड़े कान का अर्थ है - बात को गहराई से सुना जाए। उनके कान सूप की तरह हैं- और सूप का स्वभाव है कि वह सार-सार को ग्रहण कर लेता है और थोथा यानी कूड़ा-कर्कट को उड़ा देता है।
इसी प्रकार मानव स्वभाव भी होना चाहिए। उसे अच्छी बातें ग्रहण करनी चाहिए और बेकार की बातों पर गौर नहीं करना चाहिए।
लंबी सूंड तीव्र घ्राणशक्ति की महत्ता को प्रतिपादित करता है। जो विवेकी व्यक्ति है, वह अपने आसपास के माहौल को पहले ही सूंघ सकता है, संकटों की आहट सुन सकता है, और वह अपने दिमाग का इस्तेमाल करके उनसे पार पाने का रास्ता भी तलाश सकता है।
एकदंत हैं गणेश
गणेश जी का एक ही दांत है, दूसरा दांत खंडित है। यह गणेश जी की कार्यक्षमता और दक्षता का बोधक है। एकदंत होते हुए भी वे पूर्ण हैं। यह इस बात का सूचक है कि हमें अपनी कमी का रोना न रोते हुए, जो भी हमारे पास संसाधन उपलब्ध हैं, उसी में हमें दक्षता के साथ कार्य संपन्न करना चाहिए।
वक्रतुंड महाकाय
गणेश जी का उदर यानी पेट काफी बड़ा है, इसलिए उन्हें लंबोदर भी कहा जाता है। आमतौर पर देखा जाता है, जो लोग गोल-मटोल होते हैं, वे हमेशा प्रसन्नचित्त रहते हैं। वे चाहे गणेशजी हों, लाफिंग बुद्धा हों या फिर सेंटा क्लाज हों। संभवत: उनके लंबोदर स्वरूप से हमें यह ग्रहण करना चाहिए कि बुद्धि के द्वारा हम समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं और सबसे बड़ी समृद्धि प्रसन्नता है। इसके साथ यह भी सन्देश है कि जब हम सांसो को नाभि से लेना प्रारम्भ कर देते हैं तब हमारा विवेक स्थिर होने लगता है।
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पाश और अंकुशधारी
गणेश जी के हाथ में अंकुश और पाश हैं। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अंकुश और पाश की आवश्यकता पड़ती है। अपने चंचल मन पर अंकुश लगाने की अत्यंत आवश्यकता है। अपने भीतर की बुराइयों को पाश में फंसाकर आप उन पर अंकुश लगा सकते हैं।
विघ्नेश्वर और विघ्नविनाशक
गणेश जी को विघ्नेश्वर कहा जाता हैं। अर्थात वे विघ्नों के ईश्वर हैं। वहीं वे विघ्नों के विनाशक भी हैं। वे दो विपरीत गुणों के स्वामी हैं। यदि जीवन में सुख ही सुख हो, तो वह सुख भी दुख की तरह ही हो जाता है। दुखों के कारण ही हमें सुख की अनुभूति होती है। इसी प्रकार से हमें जीवन के हर पक्ष को स्वीकार करना चाहिए। विघ्न न आएं, तो हमें अच्छे-बुरे का ज्ञान नहीं हो पाता। जीवन से विघ्नों को हम अपनी ही बुद्धि से दूर भी कर सकते हैं।
इस प्रकार, श्रीगणेश के बुद्धि और विवेक रूपी उनके स्वरूप के मर्म पर चिंतन करके अपने जीवन को सफल बनाया जा सकता है।
श्रीमति माधुरी बाजपेयी
मण्डला,मध्यप्रदेश,भारत
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