सादगी श्रंगार हो गई (Sadgi shrngar ho gyee)
जब कोई व्यक्ति सादगी को साधता है तो,सरलता का जन्म होता है।यही सरलता इच्छाओं और आवश्यकताओं की तुलना करती है।इच्छाओं का वशीभूत व्यक्ति असन्तुष्ट होता है,और आवश्यकता एक स्वभाविक क्रिया है - "भोजन, घर, प्रेम,इन सभी मे लगी आपकी सारी जीवन ऊर्जा को मात्र आवश्यकताओं के तल तक ही रखना चाहिए।जिससे आप सदैव आनंदित ही रहेंगे।"सादगी श्रंगार हो गई (Sadgi shrngar ho gyee)
चंचल मन के व्यक्ति में जीवन की सादगी का अनुभवः ही नही होता न ही वह अपना कोई आदर्श प्रस्तूत कर सकता,पर सादगी से भरा व्यक्ति,तो स्वयं का जीवन सम्हाल ही लेता है।सादगी श्रंगार हो गई (Sadgi shrngar ho gyee)
साथ ही आने वाली पीढ़ी के सामने वह एक सरल आदर्श के समान अपने विचारों को उपयुक्त समय व स्थान में रख कर अपनी छठा विखेर ही देता है।
* एक आनन्द से सराबोर व्यक्ति धार्मिक होने के अतिरिक्त और कुछ नहीं हो सकता।
* एक अप्रसन्न,असंतोषी,व्यक्ति अधार्मिक होने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं हो सकता।
हो सकता है वह प्रार्थना करे, हो सकता है, वह मंदिर जाए,उससे कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला। एक अप्रसन्न व्यक्ति कैसे प्रार्थना कर सकता है? उसकी प्रार्थना में गहरी शिकायत होगी। दुर्भाव होगा। वह एक नाराजगी होगी। प्रार्थना तो एक अनुग्रह का भाव है, शिकायत का नहीं।
इसलिए हमेशा ध्यान रहे :- सरल होने में भी यह बात शामिल है कि जितना ज्यादा संग्रह सँसार भर की वृति को जोड़ने में आप लगाते हो,एक दिन ऐंसा आता ही है,जब आप उतने ही कम प्रसन्न होते जाएंगे,इस प्रकार बहुत ही दूर आप हो जाओगे सादगी से,और अंततः आप जितने दूर सादगी से होगें,उतने ही दूर आप निश्चित ही परमात्मा से हो जाओगे ।
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किसी कवि ने बड़ी ही अच्छी बात कहा है -
सादगी श्रंगार हो गयी,
आइने कि हार हो गई।
आंख ही दर्द की दवा, और
आंख ही कटार हो गई।
गम ने जब से मोल लिया,
जिंदगी उधार हो गई।
सादगी श्रंगार हो गई।।
इसलिए सरलता और सादगी से जीवन को जी लीजिये। इसके साथ-साथ अत्यंत आवश्यक बातों को भी जीवन को जियें और भूल ही जाएं आकांक्षाओं के बारे में,वे मन की कल्पनाएं है, झील की तरंगें है। वे केवल अशांत ही करती है,आपको। वे किसी संतोष की ओर नहीं ले जा सकती हैं।
व्रद्ध जनों के अनुभूत वचन
व्रद्ध जनों के अनुभवों को उनके मुखारविंद से हम अक्सर सुनते आए हैं कि जीवन में शांति जरूरी है, और शांति से रहना अपने हाथ में है शांति तभी मिल सकती है जब 'जीवन सरल हो'।
इस विषय मे विद्वान कहते हैं कि:-
जीवन हमेशा से ही सरल है, लेकिन हम उसे जटिल बनाने पर जुटे रहते हैं' ।
भारतीय संस्कृति में तो वैसे भी हमेशा से सादा जीवन उच्च विचारों को अहमियत दी गई है । हमेशा ही कोई अस्त-व्यस्त,भ्रमित,दुविधाग्रस्त और दबाव में नहीं रहना चाहता। भीड़ चाहे लोगों की हो या वस्तुओं की इच्छाओं की हो या अपेक्षाओं की,व्यक्ति की एकाग्रता को भंग करती ही है। और उसे जीवन के अधिक महत्वपूर्ण कार्यों के प्रति उदासीन बनाती है। भीड़ में खुद को गुम होने से बचाने का प्रयास से सहज सरल जीवन की कुंजी है।
कुछ छोड़ना आधार नहीं है सादगी का
कुछ लोग सोचते हैं कि सादगी का आधार कुछ छोड़ना है, ऐंसा नही है । और न ही इसे गरीबी का प्रदर्शन समझें। यह तो सीधा-सरल मार्ग है, जो कई कठनाईयों और तनाव से बचा सकता है । खुशी अगर पैसे या संग्रह से प्राप्त होती तो दुनिया के अमीर देशों में निराशा,हताशा,ह्रदय तनाव,ह्रदय घात,मानसिक तनाव जैसे परेशानियां ना होती।
विकल्प न होना जितना बुरा है उससे कहीं अधिक घातक से अधिक विकल्प होना -
आप जानते हैं इसका कारण क्या है?? इसका कारण है कि ज्यादा विकल्प होना, जिससे उनकी चयन करने की क्षमता प्रभावित पाती हैं । विकल्प न होना जितना बुरा है उससे कहीं अधिक घातक है अधिक विकल्प होना। सीमित विकल्प हो तो सोचने में वक्त नहीं लगता है और चयन में आसानी होती है, इससे समय और ऊर्जा की बचत होती है ।और दिमाग पर अनावश्यक दबाव नहीं पड़ता, जबकि ज्यादा विकल्प होने से व्यक्ति का दिमाग स्थिर नहीं हो पाता वह चंचल बना रहता है।
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सादगी यह है कि-
1)सहज होकर जीना ,
2)अपनी जरूरतों और इच्छाओं के बीच संतुलन बिठाना, 3)सीमित संसाधनों में खुश रहना,और स्वभाविक रहना है सादगी है तो क्यों न जीने का यह तरीका सीखा जाए।
सादगी का सबसे बड़ा लाभ यह है कि व्यक्ति के कार्यो में गुणवत्ता आती है जैसे ही उसके भीतर यह चेतना आती है कि जीवन में क्या और क्यों महत्वपूर्ण है, वह इच्छाओं का सही प्रबंधन करने लगता है इसे दुविधा कम होती है । और दृष्टिकोण में स्पष्टता आती है,समय-समय पर अपनी जरूरतों और इच्छाओं का आकलन करना जरूरी है। कई बार ऐसा भी होता है कि जिस चीज से आज सुविधा महसूस होती है, वही भविष्य में असुविधा का कारण बन जाती है
उदाहरण स्वरूप हो सकता है बड़ा घर लेना आज के समय में,किसी कि तीव्र इच्छा हो, मगर उम्र बढ़ने के साथ यही घर आसुविधाजनक हो सकता है, क्योंकि वह इसका रखरखाव अच्छी तरह से करने में असमर्थ होता है ।
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ग्रहण करने की सतत प्रक्रिया
वर्तमान परिवेश में सभी के दिमाग को भौतिकवादी सोच ने इतना जकड़ लिया है कि इंसान कितना भी हासिल कर ले उसे हमेशा कम ही लगता है । जबकि वह यह नहीं समझता कि सब कुछ कभी भी किसी को प्राप्त नहीं होता। सफलतम लोगों के सामने भी उनसे ज्यादा सफल लोगों की मिसाल होती है । शायद इसलिए लोगों को अब सादगी का महत्व समझ आने लगा है ।
सोच बदले संसाधन नहीं
जैसे ही व्यक्ति सादगी में जीने की आदत डालता है संग्रह की प्रवृत्ति कम होने लगती है। इससे तनाव व दबाव की वे परतें खुलने लगते हैं , जो बोझ बढ़ा रहीं थी,किन चीजों से खुशी मिल सकती है इसके बजाय व्यक्ति यह सोचने लगता है कि - किन वस्तुओं के बिना खुश रहा जा सकता है इच्छाओं के समुद्र में फसने के बजाए,जीवन भर संसाधन जुटाते रहने के अलावा विना कोई संघर्ष के एक छोटा सा प्रयास यदि वह कर लेता है कि वह अपनी सोच ही बदल दे। तो सादगी जीवन का श्रंगार हो जाएगी ।
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